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पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में अमेरिकी सैनिकों की जिगरी यार थी हार्ले-डेविडसन, पढ़िए… कैसे एक मोटरसाइकिल अमेरिका की पहचान बन गई?

साल 1945 और जगह अमेरिका। दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था। जापान के अमेरिकी नैवी बेस पर्ल हार्बर पर अटैक करने के बाद अमेरिका भी जंग में कूद गया था। इसी दौरान एक सबमरीन (पनडुब्बी) ‘यूएस लगार्टोे’ विस्कांसिन में अपने कारखाने से निकलती है। वह लेक मिशिगन से होते हुए पहले शिकागो पहुंचती है और फिर पनामा कैनाल को पार कर प्रशांत महासागर में जापानी नैवी से भिड़ जाती है। इस पनडुब्बी में कैप्टन फ्रैंक लाटा समेत 86 नौसैनिक सवार थे। लगार्टो ने प्रशांत महासागर में पहुंचते ही सबसे पहले एक जापानी सबमरीन को डुबो दिया और एक कार्गो जहाज को उड़ा दिया। यह फरवरी के आसपास का समय था। मई के महीने में लगार्टो की हाल खबर मिलना बंद हो गई। आखिरी बार इसे थाईलैंड के एक तट के पास से डिटेक्ट किया गया था।
तब से न तो सबमरीन लगार्टो से रेडियो कान्टैक्ट हुआ और और न ही वह वापस आई थी। इस सबमरीन में सवार सभी लोगों को लापता घोषित कर दिया गया। एक साल बाद सभी सैनिकों को मरा घोषित कर दिया गया। इसके करीब छह दशकों के बाद गोताखोरों को यहीं पर 150 फिट नीचे सबमरीन मिली। उस पर हमला हुआ था। लेकिन, इन सब के बीच यहां मिले मशहूर अमेरिकन बाइक हार्ले-डेवि़डसन के पुर्जे।
समुद्र के अंदर एक सबमरीन के अंदर बाइक के पुर्जे मिलना आश्चर्य की बात थी। दरअसल, यह बाइक सबमरीन के कैप्टन फ्रैंक लाटा की थी। फ्रैंक अपनी इस बाइक से इतना प्यार करते थे कि उसे अपने साथ सबमरीन में ले गए। सबमरीन में जगह बहुत तंग होती है तो पूरी बाइक आना असंभव था। इसलिए फ्रैंक ने उसके कई पुर्जों में खोलकर अपनी सबमरीन में रख लिया था। हार्ले-डेविडसन को लेकर यह जुनून तब से लेकर आजतक वैसा ही है।

सबमरीन के कैप्टन फ्रैंक लाटा अपनी हार्ले-डेविडसन के साथ।

चाहे पहला विश्व युद्ध हो या दूसरा हार्ले-डेविडसन अमेरिकी सैनिकों की पहली पसंद रही। उस समय ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर ये बाइक अपने अलग-अलग तरह के इस्तेमाल और मजबूती की वजह से फायदेमंद साबित होती थी। केवल यही मोटरसाइकिल थी जो दूरदराज़ के इलाकों में पहुंचा करती थी। आज इस भारी-भरकम पॉवर बाइक को अमेरिका अपनी पहचान के तौर पर देखता है।

(अब आप सोच रहे होंगे कि यह कहानी हम आज क्यों बता रहे हैं? दरअसल हार्ले डेविडसन अब भारत ने अपना कारोबार समेटने जा रही है। भारत में लगातार घटती बिक्री और कोरोना के चलते आई मंदी की वजह से कंपनी ने अपने कारोबार को फिर से पुनर्गठित करने की योजना बनाई है। कंपनी अपने खर्चे में 75 मिलियन डॉलर की कटौती करेगी, इसके चलते यह भारत में अपनी मैन्युफैक्चरिंग बंद करेगी। हालांकि, अभी जिनके पास बाइक है कंपनी उनको सर्विस सुविधा नए पार्ट्स की बिक्री की व्यवस्था करती रहेगी।)

अब हार्ले की कहानी शुरुआत से
साल था 1903 और जगह थी अमेरिका का शहर विस्कॉन्सिन। यहां के मिलवॉकी नाम की जगह में तीन भाइयों ने विलियम एस हार्ले, आर्थर और वॉल्टर हार्ले-डेविडसन कंपनी की नींव रखी। हार्ले शब्द आया तीनों भाइयों से सरनेम से और डेविडसन आया उनके पिता डेविड से। चूंकि तीनों डेविड के सन (बेटे) थे, इसलिए डेविडसन। बीबीसी की खबर के मुताबिक पहली मोटरसाइकिल जिस फैक्ट्री में बनी वह 10 बाई 15 फुट का कमरा था, जिस पर लकड़ी की छत थी और दरवाजे पर उकेरा गया था हार्ले-डेविडसन मोटर कंपनी।

हार्ले-डेवडसन की पहली फैक्ट्री। साल 1903 में इसी में पहली बाइक बनी थी।

बाइक का सबसे पहला खरीदार उनका दोस्त हेनरी मेयर था। कंपनी के लिए साल 1905 काफी अहम रहा। इस साल हार्ले-डेविडसन ने शिकागो में 15 मील की एक रेस मात्र 19 मिनट में जीती। इसके बाद हार्ले ने कई रेस में हिस्सा लिया और उन्हें जीता। कई रिकॉर्ड तोड़े और बनाए। अब इस मोटरसाइकिल की मजबूती की चर्चा दूर-दराज तक फैलने लगी थी। कंपनी जब छह साल की हुई तो हार्ले का नया वर्जन आया। यह वी-टि्वन पॉवर्ड मोटरसाइकिल पेश थी। इसमें 45 डिग्री के कोण पर दो सिलेंडर लगे थे।

हार्ले-डेविडसन की वी-टि्वन पॉवर्ड मोटरसाइकिल।

यह हार्ले-डेविडसन के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। बीबीसी के मुताबिक कंपनी ने साल 1912 में पहली बार जापान को अपनी मोटरसाइकिल बेची। यह अमरीका से बाहर हार्ले-डेविडसन की पहली बिक्री थी।

विश्व युद्ध से कनेक्शन
पहले विश्व युद्ध से ही हार्ले-डेविडसन बाइक सेना के लिए बहुत खास हो गई थी। साल 1917 में कंपनी में बनीं एक तिहाई बाइक सेना को बेची गईं थी। साल 1918 में कंपनी की करीब आधी मोटरसाइकिल सेना ने खरींदी। पहले विश्वयुद्ध में अमेरिकी सेना ने कुल 20 हजार मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया, इसमें ज्यादातर हार्ले-डेविडसन थीं। 1920 तक आते-आते दुनिया के 67 देशों में हार्ले-डेविडसन की बिक्री होने लगी। 1941 में दूसरे विश्वयुद्ध के शुरुआत से ही हार्लंे-डेविडसन ने सेना के लिए खूब बाइकें बनाईं। 1945 के बाद युद्ध खत्म होते ही उसने आम नागरिकों के लिए भी बाइकें बनाना शुरू कर दीं। 1980 और 1990 के दशक में कंपनी ने वो मॉडल लॉन्च किए जो आज भी मार्केट में अपना कब्ज़ा जमाए हुए हैं। अपने सफर में कई उतार-चढ़ाव से गुजरी हार्ले का जलवा कल भी कायम था और आगे भी कायम रहेगा।

हार्ले के लिए भारत से उलझे थे ट्रम्प
हार्ले-डेविडसन बाइक के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत से भी उलझ गए थे। उन्होंने कहा था कि भारत इन बाइकों पर 60-75% तक टैक्स लगाता है जो कि गलत है। इसके बाद मोदी सरकार ने टैक्स को घटाकर 50% किया था। हार्ले-डेविडसन ने 2009 में भारतीय बाजार में कदम रखा था। जुलाई 2010 में कंपनी ने भारत में अपनी पहली डीलरशिप की शुरुआत की थी। कंपनी ने भारत में 17 नए मॉडल पेश किए थे, जिनके दाम 5 लाख रुपए से लेकर 50 लाख रुपए के बीच हैं। कंपनी ने मैन्युफैक्चरिंग के लिए हरियाणा के बावल में अपना कारखाना खोला था, जिसे अब बंद करने का फैसला लिया गया है।

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