हाथरस गैंगरेप में निलंबित किए गए पुलिस वालों और पीड़ित परिवार का नार्को टेस्ट कराया जाएगा, आइये… नार्को टेस्ट का पूरा तिया-पांचा समझते हैं

रूम डॉक्टरों और जांच अधिकारियों से भरा हुआ है। एक शख्स स्ट्रेचर पर है और डॉक्टर उसके गाल पर थपकियां देकर होश में रखने की कोशिश कर रहे हैं। एक महिला अधिकारी की आवाज आती है- हू आर दोज पॉलिटिशियन, हू आर दोज पॉलिटिशियन ते लगी…।
स्ट्रेचर पर लेटा हुआ शख्स लड़खड़ाती आवाज में कहता है- एनसीपी… मिस्टर शरद पवार एंड मिस्टर भुजबल…।
फिर आगे वह कहता है- पॉलिटिशियन आर द बैकबोन ऑफ द बिजनेस एंड आई वुड प्रिफर नाट टू नेम पॉलिटिशियन. आई एम बीइंग थ्रेटेंड… (नेता बिजनेस की बैकबोन होते हैं और मैं नेता का नाम लेना नहीं चाहूंगा। मुझे धमकी दी गई है।)
साल 2००3 में वायरल हुआ यह वीडियो एक नार्को टेस्ट का है। जिस शख्स का यह टेस्ट हो रहा है वह है मशहूर जालसाज अब्दुल करीम तेलगी।
अब्दुल करीम तेलगी ने कंपनियों, बैंकों और विदेशी कंपनियों को नकली स्टांप बेचकर करीब 1० अरब रुपये का घोटाला किया। स्टांप पेपर घोटाला देश के बड़े घोटालों में से एक है। 2००1 में तेलगी को अजमेर से गिरफ्तार किया गया था। 2००6 में 3० साल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, कई बीमारियों के चलते 2०17 में उसकी मौत हो गई थी। नार्को टेस्ट में तेलगी का पवार और छगन भु जबल से लिंक कभी साबित नहीं हो पाया।
(आप सोच रहे होंगे कि हम यहां तेलगी की बात करने वाले हैं, नहीं… आज हम बात करने जा रहे हैं नार्को टेस्ट की। दरअसल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाथरस कांड में पुलिस वालों और पीड़ित परिवार का नार्को टेस्ट कराने को कहा है। इसलिए हम नार्को टेस्ट का तिया-पांचा समझते हैं।)
भारत में नार्को टेस्ट की शुरुआत सबसे पहले गुजरात के गोधरा कांड के केस से हुई। केस से जुड़े सात आरोपियों का नार्को टेस्ट किया गया तब से लेकर अब तक कई बार यह टेस्ट केस को सुलझाने और आरोपियों से सच उगलवाने के लिए किया गया है।
नार्को टेस्ट क्या है?
नार्को टेस्ट एक तरह का साइकोलॉजिकल टेस्ट है। एक दवा है सोडियम पेंटोथल। जिस पर नार्को टेस्ट करना होता है, उसे इस दवा का इंजेक्शन दिया जाता है। इंजेक्शन सिरिंज के जरिए एक बार में सुई चुभाकर नहीं दिया जाता, बल्कि ग्लूकोज के साथ मिलाकर धीरे-धीरे दिया जाता है। ऐसे में व्यक्ति ऐसी हालत में पहुंच जाता है, जहां वह पूरी तरह होश में भी नहीं रहता और पूरी तरह से बेहोश भी नहीं होता। उसकी बहुत ज्यादा सोचने, समझने की क्षमता खत्म हो जाती है। वह घुमाफिराकर जवाब नहीं दे पाता है। ऐसे में सवाल पूछने पर ज्यादा संभावना इस बात की होती है वह सच बोलेगा। क्योंकि सच आसानी से दिमाग के बाहर आ जाता है, बल्कि झूठ बोलने के लिए ज्यादा दिमाग लगाना पड़ता है।
इस टेस्ट में केवल सवाल ही नहीं पूछे जाते बल्कि व्यक्ति के दिमाग का रिएक्शन भी चेक किया जाता है। व्यक्ति के सामने कम्प्यूटर पर पहले तो नार्मल पौधे और फूल-पत्ती की फोटो दिखाई जाती है। फिर बीच में अचानक घटना से जुड़ी फोटो दिखाई जाती है। ऐसे में उसके दिमाग का रिएक्शन चेक किया जाता है। अगर वह व्यक्ति घटना से जुड़ा होता है दिमाग अलग तरह का रिएक्शन देता है।
इस टेस्ट के दौरान आरोपी पर क्या असर होता है?
सोडियम पेंटाथल की मात्रा अगर ज्यादा हो जाए तो व्यक्ति सो भी सकता है। इसलिए उसकी चेतना बनाए रखने के लिए मात्रा का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। टेस्ट के दौरान व्यक्ति के ब्लड प्रेशर, पल्स और ईसीजी पर लगातार नजर रखी जाती है। दवा देने के एक मिनट के भीतर ही असर शुरू हो जाता है और व्यक्ति अर्धचेतना की हालात में पहुंचने लगता है। अगर दवा की डोज और भी ज्यादा हो जाए तो व्यक्ति कोमा में जा सकता या फिर उसकी मौत भी हो सकती है। नार्को टेस्ट करने से पहले व्यक्ति का परीक्षण किया जाता है।
क्या नार्को टेस्ट से 1००% सच निकलवाया जा सकता है?
डॉक्टरों का कहना है कि यह कहना सही नहीं है कि इससे 1००% सच निकलवाया जा सकता है। अब्दुल करीम तेलगी केस में भी नार्को टेस्ट के दौरान कही गई बात कभी साबित नहीं हुई। आरुषी हत्याकांड में उसके पिता राजेश तलवार और मां नुपुर तलवार पर भी नार्को टेस्ट से कोई सफलता नहीं मिली थी। नार्को टेस्ट की सफलता पूछे गए सवालों पर भी निर्भर करती है।
संविधान में इसको लेकर क्या नियम हैं?
भारतीय संविधान में आर्टिकल 2० के क्लॉज 3 में कहा गया है कि किसी भी अपराध में आरोपी को खुद के खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। 5 मई 2०1० में सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन की खंडपीठ ने आदेश दिया था कि जिस व्यक्ति का नार्को टेस्ट लिया जाना है, उसकी सहमति भी जरूरी है। बिना अनुमति के यह टेस्ट गैरकानूनी है। सीबीआई समेत दूसरी एजेंसियों को नार्को टेस्ट करने के लिए कोर्ट की अनुमति लेना भी जरूरी होता है।
अब नार्को टेस्ट का थोड़ा इतिहास भी जान लीजिए
नार्को एक ग्रीक शब्द नार्क से बना है, जिसका मतलब होता है- सुस्ती या बेहोशी। सबसे पहले जे स्टीफन हार्सले ने इस शब्द का इस्तेमाल किया था। 1922 में यह मेनस्ट्रीम में तब आया जब टेक्सास के प्रसूति वैज्ञानिक (डिलीवरी कराने वाले) राबर्ट हाउज ने दो कैदियों को स्कोपोलेमाइन दवा दी थी। शुुरुआत में यह विकसित देशों में खूब तेजी से फैला। लेकिन, अब कई देशों में यह टेस्ट गए जमाने की बात हो गई है।