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नासा अंतरिक्ष में एक अरब 68 करोड़ रुपये का टॉयलेट भेज रहा है, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में होगी टेस्टिंग

सबसे पहले बात खबर की
अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) में एक अरब 68 करोड़ का टॉयलेट भेज रहा है। दरअसल, शुक्र वार शाम को वर्जीनिया के एक कार्गो स्पेसक्राफ्ट साइनस के जरिए 8००० पाउंड (3628 किलोग्राम) की सप्लाई इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन भेजी जाएगी। पहले इसे गुरुवार को ही भेजा जाना था, लेकिन एन वक्त पर खराबी आने से लॉन्चिंग टाल दी गई। इसके साथ ही 1०० पाउंड (45 किलोग्राम) का यह टॉयलेट भी भेजा जाएगा। स्पेस स्टेशन में अंतरिक्षयात्री कई महीनों तक इसकी टेस्टिंग करेंगे। अगर सब सही रहा तो इसे चांद पर जाने वाले नासा के ऑरियॉन कैप्सूल में फिट किया जाएगा।
अभी स्पेस स्टेशन में दो टॉयलेट हैं। दोनों ही रूस ने बनाए हैं। इन टॉयलटों पर महिला अंतरिक्षयात्रियों को खासी परेशानी होती है। कहा जा रहा है कि नए टॉयलेट महिलाओं के लिए बहुत सविधाजनक हैं। 28 इंच का यह टॉयलेट रूसी टॉयलेटों से वजन और आकार में आधा है। इस टॉयलेट को यूनिवर्सल वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम नाम दिया गया है। इसे टाइटेनियम से बनाया गया है। क्योंकि टाइटेनियम स्टील जैैसा ही मजबूत और हल्का होता है। साथ ही इसमें जंग नहीं लगती और जल्द गर्म भी नहीं होता है।

जानिए स्पेस स्टेशन में कितना मुश्किल है पॉटी करना
स्पेस स्टेशन में अभी मौजूद टॉयलटों में नंबर-1 (यूरिन) करने के लिए एक अलग पाइप होता है और नंबर-2 (पॉटी) करने के लिए एक कंटेनर होता है। अब स्पेस स्टेशन में धरती जैसा गुरुत्वाकर्षण तो है नहीं, कि पॉटी की और वो सीधे नीचे ही जाए। स्पेस स्टेशन में तो वह तैरने लगेगी। इसलिए यहां वाला टॉयलेट बना होता है वैक्युम क्लीनर की तर्ज पर। पॉटी करने वाले कंटेनर और यूरिन करने वाले पाइप में वैक्युम होता है, जो हमारी पॉटी और यूरिन को खींच लेता है। पॉटी करने वाले कंटेनर और यूरिन वाले पाइप का इस्तेमाल एक साथ करना महिलाओं के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए जो नया वाला टॉयलेट भेजा गया है, वह महिला अंतरिक्षयात्रियों के लिए बहुत आरामदायक है।

क्या होता है अंतरिक्ष यात्रियों की पॉटी का?
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन 21 सालों से अंतरिक्ष में मौजूद है। अब मन में यह सवाल आ रहा होगा कि इतने सालों से अंतरिक्ष यात्री वहां मौजूद हैं तब तो बहुत सारी पॉटी इकSा हो गई होगी।…
नहीं ऐसा नहीं है। अंतरिक्षयात्री जिस कंटेनर में पॉटी करते हैं उसे एक पॉलिथिन में पैक किया जाता है और हर 1० दिन में पॉलिथिन बदल दी जाती है। पॉटी को पॉलिथिन में बांधकर कर रख दिया जाता है। जब कोई कार्गो स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी से सामान लेकर स्पेस स्टेशन आता है तो उन पॉलिथिन और बाकी कचरे को उसी स्पेसकàाफ्ट में लाद दिया जाता है। फिर वह स्पेसकàाफ्ट जैसे ही पृथ्वी के वातावरण में तेजी से आता है तो घर्षण के चलते सबकुछ जलकर राख हो जाता है। ये हो गई पॉटी की बात अब आते हैं यूरिन पर।
अंतरिक्ष यात्री जो यूरिन करते हैं उसको रिसाइकिल किया जाता है। 85 फीसद यूरिन को पीने के पानी में बदल दिया जाता है।

(अब फिर से नासा के नए टॉयलेट पर लौटते हैं। अगर स्पेस स्टेशन में नए टॉयलेट की टेस्टिंग सही रही तो क्या?)
अगर नया टॉयलेट सक्सेसफुल रहा तो नासा चंद्गमा और मंगल के मिशन पर यही टॉयलेट इस्तेमाल करेगा। साथ ही इसका बिजनेस भी करेगा। जैसा कि पता ही है कि स्पेस सेक्टर में प्राइवेट कंपनियां आ रही हैं। स्पेसएक्स ने हाल ही में अपने रॉकेट से अंतरिक्षयात्रियों को स्पेस स्टेशन भेजा था। विमान बनाने वाली कंपनी बोइंग भी इस सेक्टर में तेजी से आ रही है। ऐसे में इन कंपनियों को ये टॉयलेट्स बेचे जाएंगे। नासा का लक्ष्य है कि जल्द ही स्पेस स्टेशन में टूरिज्म शुरू किया जाए। इसके लिए भी नए टॉयलेट्स की जरूरत रहेगी।

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