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क्या तीसरा विश्वयुद्ध शुरू कर सकता है आर्मीनिया और अजरबैजान का युद्ध?

इस दुनिया में एक जगह है यूरेशिया। नाम से साफ है कि यह यूरोप और एशिया का मिलन है। यहां पर दो देश हैं आर्मीनिया और अजरबैजान। आर्मीनिया जहां ईसाई बहुल देश हैं वहीं, अजरबैजान मुस्लिम बहुल। दोनों के बीच 27 सितंबर से अघोषित रूप से युद्ध चल रहा है। युद्ध की वजह है एक जगह जिसका नाम नागोर्नो काराबाख है। यह जगह अभी अर्मेनिया के कब्जे में है और अजरबैजान का दावा है कि यह उसकी जगह है। इसलिए अजरबैजान ने आर्मीनिया पर हमला बोल दिया।
आप यहां के हालात को करीब- करीब भारत पाकिस्तान की हालातों जैसा समझ सकते हैं। इस युद्ध में अजरबैजान के पक्ष में खड़ा हुआ है तुर्की और आर्मीनिया के पक्ष में रूस और ईरान। हालात और समय वैसे ही हैं जैसा दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत में थे। दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत भी कुछ ऐसे ही हुई थी। 1 सितंबर 1939 को जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया था। इसके बाद फ्रांस और ब्रिटेन ने जर्मनी पर हमला बोल दिया। दुनिया दो भागों में बंट गई और धुरी राष्ट्र और मित्र राष्ट्र। आखिरी में मित्र राष्ट्रों की जीत हुई, लेकिन युद्ध में लाखों लोगों की मौत हुई। हालांकि, अभी उम्मीद यही है कि अर्मेनिया और अजरबैजान का युद्ध जल्द समाप्त हो जाए।

आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच विवाद की वजह
पहले विश्वयुद्ध से भी पहले आर्मीनिया और अजरबैजान एक ही देश हुआ करते थे। 1918 में विश्व युद्ध खत्म हुआ तो इस इलाके से तीन देश बने। जॉर्जिया, आर्मीनिया और अजरबैजान। इसके बाद रूस के जोसेफ स्टालिन ने आर्मीनिया और अजरबैजान को यूएसएसआर (सोेवियत संघ) में शामिल कर लिया। स्टालिन ने यहां पर एक गलती की। उन्होंने आर्मीनिया के पहाड़ी वाले इलाके नागोर्नो काराबाख को अजरबैजान को दे दिया। 44०० वर्ग किलोमीटर के इस क्षेत्र में ज्यादातर लोग आर्मीनियाई मूल के ईसाई हैंं। आर्मीनिया ने जब इसका विरोध किया तो स्टालिन ने 1923 में नागोर्नो काराबाख को अजरबैजान का एक स्वायत्त क्षेत्र घोषित कर दिया। 1988 में नोगार्नो काराबाख ने एक प्रस्ताव पारित कर खुद के अर्मेनिया में शामिल होने की इच्छा जताई। सोवियत संघ टूटने के बाद आर्मीनिया और अजरबैजान फिर अलग हुए। बीबीसी के मुताबिक 199० के दशक में अजरबैजान ने नागोर्नो कारबाख को वापस लेना चाहा तो दोनों देशों में युद्ध हुआ। करीब 3० हजार लोग मारे गए। 1994 में युद्ध विराम हुआ, लेकिन तब से लगातार दोनों देशों के बीच हिंसा की खबरें आती रहती हैं।

कौन किसकी तरफ?
इन दोनों के मामले में सीधे दखल लिया है तुर्की, रूस और ईरान। तुर्की जहां अजरबैजान तो वहीं, रूस और ईरान आर्मीनिया की तरफ हैं। पहले तो अमेरिका समेत रूस और बाकी देशों ने यहां शांति बनाए रखने की अपील की थी। लेकिन, तुर्की ने साफ कहा था कि वह अजरबैजान का साथ देगा। इसकी वजह है कि अजरबैजान में तुर्की मूल के मुस्लिम रहते हैं और तुर्की शुरू से ही अजरबैजान के साथ खड़ा रहा है। वहीं, रूस ने कहा है कि वह अपने पड़ोस में आतंकियों का गढ़ नहीं बनने देगा। दरअसल तुर्की सीरिया से आतंकियों को नोगार्नो काराबाख भेज रहा है। इसकी पुष्टि सीरिया की बसल अल असद सरकार ने भी की है।
रूस का कहना साफ है कि वह आर्मीनिया का साथ देगा। इसकी एक वजह यह है कि अमेरिका के नाटो की तरह रूस का एक संगठन है कैस्टो (कलेक्टिव सिक्युरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन)। आर्मीनिया उसका मेंबर है। ऐसे में रूस को आर्मीनिया का साथ देना ही पड़ेगा। अर्मेनिया में रूस का सैन्य बेस भी है।
अब करते हैं ईरान की बात। दरअसल दोनों देशों की लड़ाई में कुछ गोले ईरान के गांवों में भी गिरे हैं। ऐसे में ईरान ने कहा है कि यह उसे बर्दाश्त नहीं है। अगर समर्थन की बात करें तो ईरान आर्मीनिया की तरफ है। इसकी वजह है शिया और सुन्नी विवाद। ईरान जहां शिया बहुल देश है तो वहीं तुर्की सुन्नी बहुल।

भारत का क्या कनेक्शन?
भारत का अजरबैजान और आर्मीनिया से दोनों से बेहतर सम्बंध हैं। अजरबैजान की राजधानी है बाकू। बाकू का हिन्दू धर्म से पुराना नाता है। 98% मुस्लिम आबादी वाले अजरबैजान में हिन्दू नहीं है। इसके बावजूद यहां बाकू में एक हिंदू मन्दिर है। इसका नाम है- फायर ऑफ टेम्पल यानी आतिशगाह। फायर टेम्पल नाम इस वजह से पड़ा क्योंकि बहुत सालों से आग जल रही है।

अजरबैजान का फायर टेम्पल। सोर्स- गूगल

मंदिर की दीवारों पर देवनागिरी, संस्कृत और गुरुमुखी में कुछ लिखा गया है। मंदिर के निर्माण की तारीख भी इसमें लिखी है, सम्वत- 1783। न्यूज-18 की खबर के मुताबिक इसमें मंदिर बनाने वालों के नाम लिखे हैं उत्तमचंद और शोभराज। माना जाता है कि ये भारतीय व्यापारी रहे होंगे, जिन्होंने अपने रास्ते में पड़ने वाली इस जगह पर मन्दिर बनवाया होगा।

2०18 में अजरबैजान की राजधानी बाकू में फायर टेम्पल पर प्रार्थना करतीं तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज। सोर्स- गूगल

अब आते दूसरे कनेक्शन पर। दरअसन चीन के बीआरआई (बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव) की तरह भारत भी एक रूट बना रहा है। यह रूट रूस से लेकर ईरान के चाबहार तक जाएगा और फिर वहां से मुम्बई तक आएगा। दरअसल यह रूट अजरबैजान से होकर निकलता है। अजरबैजान में हालात खराब होने पर हमारा भी नुकसान होगा। इसके साथ ही आर्मीनिया हमेशा से भारत के साथ खड़ा रहा है। चाहे वह कश्मीर मसला हो या दूसरे मुद्दे। ऐेसे में दोनों देशों का युद्ध में कूदना नुकसानदायक ही है।

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